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समाज के लिए साहित्यकार का दायित्व

नमस्कार मेरे सभी भाइयों बहनों और प्यारे मित्र

मैं लेखक हूं साहित्य सेवा
इस पंक्ति में साहित्य के प्रति कर्तव्य का भाव है, यह उस हर लेखक का भाव है जो साहित्य लिखता है।

जिनमें धैर्य की कमी होती है वह बूंदों का सामर्थ्य नहीं जानते हैं खैर आज नकारात्मक पहलुओं पर उदाहरण देने का मेरा मन नहीं है इसीलिए मैं उस सकारात्मक दृष्टि की बात करता हूं जिसके कारण हम सब ने मिलकर यह विशाल साहित्य परिवार बनाया है।

हमारे समूह में एक लाख से भी अधिक सदस्य जुड़ चुके हैं, जिनमें वरिष्ठ अनुभवी नवीन उभरते साहित्यकार और जिज्ञासु पाठक शामिल है।

आखिर क्यों बनाया गया है इस समूह को और क्यों इस समूह के शीर्षक को लेखक के कर्तव्य भाव से विभूषित किया गया है, मेरे अनुसार साहित्य जीवन है जीने की कला का नाम ही साहित्य है ऐसा क्या है जो साहित्य नहीं है, ज्ञात भी साहित्य है और अज्ञात भी साहित्य है।
मनुष्य को बुद्धिमान बनने के लिए श्रेष्ठ ज्ञान चाहिए और श्रेष्ठ ज्ञान को पाने के लिए श्रेष्ठ साहित्य चाहिए।
शिष्ट साहित्य लिखने के लिए निश्चल बुद्धि चाहिए, निश्चल साहित्यकार मूली की परवाह नहीं करता है वह अपना मूल्य वह लिखकर ही प्राप्त कर लेता है जो वह लिखना चाहता है और वैसे भी साहित्य से जुड़ी मूल्य की घटना तो भविष्य की है उसका लिखते समय उन भावों से कोई तात्पर्य नहीं होता, यही एकाग्रता श्रेष्ठ साहित्यकार की सबसे बड़ी पहचान है।
साहित्यकार समाज का दृष्टा है और साहित्य समाज का दर्पण है इस विधि से साहित्यकार ही समाज का निर्माता और नेतृत्व करता है, जो साहित्यकार अपने लेखन में समाज के हितों का ध्यान रखता है वही असली साहित्यकार है वह नहीं जिसकी कलम नोटों की गड्डी देखकर अपनी दिशा भूल जाती है और समाज को भ्रमित और अनुचित के लिए प्रेरित करती है।
अगर सच्चाई से देखा जाए तो असली नायक तो साहित्यकार ही होता है पर जब साहित्यकार ही मनोरंजक बन जाता है तो फिल्में, क्रिकेट, सीरियल, टिक टॉक, मौज, पब्जी, फ्री फायर, टीवी, सोशल मीडिया आदि समाज के लिए प्रेरणा बन जाते हैं और समाज इनका अनुसरण करने लगता है निरंतर किताब पढ़ने वाले पाठकों की संख्या घटती जा रही है इसका कारण ऑडियो वीडियो और नवीन टेक्नोलॉजी नहीं है साहित्यकार की कमजोर गुणवत्ता है जिसे वह अपने साहित्य में प्रदर्शित नहीं कर पा रहा है।
आज कविताएं बुजुर्गों की तरह हो गई है जिंनकी ना तो कोई बात सुनता है और ना ही उनका आदर करता है।
कहानियां बोर करने लगी है।
दो पंक्ति के शेर तो सुहाने लगते हैं पर गजल सुनने में वक्त भी अखरता है।
लिखित साहित्य में पाठकों की रूचि बढ़ाना यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है यह साहित्यकार का ही दायित्व है 
कि वह निराश पाठकों को प्रेरणा के साथ जीवन हितकर साहित्य दे।

#chetanshrikrishna

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7 Comments

Chetna swrnkar

25-Sep-2022 10:52 AM

बहुत सुंदर रचना

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shweta soni

25-Sep-2022 08:14 AM

बेहतरीन रचना

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